तुम क्या जानो कैसे बीती
काली वाली हिज्र की रात।
रह रह कर याद आती थी
तुम्हारी कही हुई हर बात।
बहुत गुमान था खुद पर मुझको
तुमने दिखला दी औकात।
मरहम मुझको कौन लगाता
आग लगाती थी बरसात।
दिल को मैंने खूब मनाया
पर ढाक के वही तीन पात।
क्या तुमने की थी दिल्लगी
यहाँ लगे हुए थे जज़्बात।
राहू की यह महा दशा है
या साल शनि के साढ़े सात ?
यूँ ही कटेगी उम्र मेरी अब
या फिर सुधरेंगे हालात ?
You do speak my heart out sometimes 😃.
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Maybe broken hearts speak a common language…
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Undoubtedly true 🙂
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