पूछती हो तुम मुझसे, किसका है ये दर्द पुराना
क्या दवा दे सकती हो, लेता हूँ गर नाम तुम्हारा
मुझको सारे भूल गए हैं, मुझ में कोई बात कहाँ थी
हाँ जिस जगह जाती हो, होता है बस नाम तुम्हारा
मैं तो संज्ञाशून्य था, मुझमें थे ये भाव कहाँ
मेरी हर कल्पना में, होता है अब नाम तुम्हारा
लोग मुझे छेड़ा करते हैं, लोग मुझे देते हैं ताना
यूँ ही बातों बातों में, ले लिया था नाम तुम्हारा
स्याही मंद पड़ी हो शायद, याद अभी भी ताज़ी है
कॉपी के अंतिम पन्ने पर, लिखते थे हम नाम तुम्हारा
चौंक जाती हो ऐसे, सुनती हो जब नाम हमारा
सबको यूँ लगता है, जैसे अमित हो नाम तुम्हारा
I can’t thank you enough for giving us actual good stuff to read 🤗
LikeLiked by 1 person
Thanks for making me feel special…
LikeLiked by 1 person