सोचता हूँ क्या पूछता तुमसे
मिल जाते गर यूँ ही राहों में
मुड़ कर भी न देखा तुमनें
न था कोई असर मेरी आहों में
कुछ भी हो पर नहीं गवारा
देखूं तुम्हें गैर की बाँहों में
कैसे मानूं सब भ्रम था मेरा
देखा था प्यार तेरी निगाहों में
जो भी चाहो सज़ा दो मुझको
था प्यार छिपा मेरे गुनाहों में
Amazing 🙌
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Thanks !!!
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added a couplet…
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Wonderful lines🙌
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Thanks Prakhar !!!
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