देखता हूँ लोगों को
सफ़ेद, काली पोशाकों में
रंगीन लहंगों में मुटियारें
याद बहुत आती हैं
हैं बहुत रंगीं फ़ूल मगर
नहीं किसी में भी खुशबू
गुलाब के फूलों की कतारें
याद बहुत आती हैं
सावन हरे न भादों सूखे
लोगों में उन्माद कहाँ है
अपने देश की बहारें
याद बहुत आती हैं
कटा दिए सर अपने
नहीं झुकने दिया तिरंगा
नहीं झुकी जो कटारें
याद बहुत आती हैं
जय हिन्द !!!
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