मेरी तन्हाई में नहीं है तेरा कुसूर
होता नहीं तुझसा बुलंद सब का नसीब ।१।
कर दीं फ़ना तमाम उम्र हमनें
इसी उम्मीद में कि देखें तुम्हें क़रीब ।२।
कैसे करूँ गिला कि ठुकरा दिया मुझे
वो भी तो था दोस्त जो बन गया रक़ीब ।३।
नहीं रहा लब्ज़ों पर अब ऐतबार कोई
कहा था एक रोज़ तूने मुझे हबीब ।४।
खुद को कब का समझा चुका अमित
मत कर फिर से सुलह की तरक़ीब ।५।
हिन्दी उर्दू पर अच्छी पकड़ है आपकी।
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धन्यवाद् !!!
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Welcome.
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