पहुँचते हैं मेरे आशार तुम तक कभी
या मेरी चाहतों से बेख़बर तुम हो ।१।
सूरज की हो पहली किरण तुम या
फ़िज़ाओं में घुलता इतर तुम हो ।२।
नहीं होती हैं पांचों उँगलियाँ बराबर
अनबुझी पहेली, समीकरण तुम हो ।३।
कौन रखता है सभी गुनाहों का हिसाब
मेरी किस भूल का सबब तुम हो ।४।
मेरी हसरतों से ही है कहीं तेरा वज़ूद
हैं मेरी तमन्नाएँ अमित तो तुम हो ।५।
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