पढ़ लीं हैं जब से ये आँखें तुम्हारीं
कोई क़िताब तो मुझको दरक़ार नहीं ।१।
हाल सुनकर मिलने आओगे तुम शायद
तुम इतने भी पराये, इतने बेज़ार नहीं ।२।
क्या करें तुमसे कोई शिकवा गिला
अब हमें तुम पर कोई अधिकार नहीं।३।
डरता हूँ तेरी इस ख़ामोशी से मैं
तेरे लब्ज़ों में वो पहले सा अंगार नहीं।४।
हो जाऊँगा एक रोज़ यूँ ही तनहा फ़ना
जो दें सहारा वो काँधे चार नहीं ।५।
बेमतलब ही तूने सँजों लिए सपने अमित
थी वो फ़कत मुर्रव्वत कोई प्यार नहीं ।६।
In response to: Reena’s Exploration Challenge # 121
Good one!
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Thanks Reena !!!
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