अब कोई आरज़ू न कोई ज़ुस्तज़ू
मुझे जीने का कोई बहाना न दो ।१।
कभी किसी ने भी न अपनाया मुझे
मत खाओ तरस आब-ओ-दाना न दो ।२।
नहीं होता सब का मुकद्दर बुलंद
मत करो मदद पर उलहाना न दो ।३।
नहीं करना हो जब सौदा मुकम्मल
वाज़िब यह है कि कोई बयाना न दो ।४।
हो जाने दो सपनो से आज़ाद अमित
अब फ़िर कोई बंधन पुराना न दो ।५।
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