देकर चैन अपना, मैंने पायी बेवफाई
तेरे इश्क़ की मैंने बड़ी कीमत चुकाई
क्या देकर खरीदूं वस्ल की एक शाम
इश्क़ के बाज़ार में बढ़ गयी महंगाई
जाती है छोड़ कर पर आती है वापस
तुझसे तो कहीं अच्छी है मेरी परछाई
हर रोज़ खिज़ा में याद आते है वो दिन
तेरे संग मौसम भी लेती थी अंगड़ाई
एक बार फिर झलक दिखला दे अमित
इस से पहले कि जान ले मेरी तन्हाई
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