अभी तो मिले थे हम, अभी बिछड़ गए
मेरे नसीब में है धुआँ धुआँ सा इश्क़
कुछ दिन तो मुझको दिखाई जन्नत मगर
हँसता है अब मुझपर शैतां सा इश्क़
तरस रहा हूँ प्यार की एक बूँद के लिए
जल रहा इस जून में मकां सा इश्क़
जब भी ज़रुरत पड़ी, कर लिया याद
समझा है क्या तुमने दुकां सा इश्क़
क्यों हुआ इश्क़ में नाकाम तू “अमित”
लगा था सब के लिए है आसां सा इश्क़
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