थक चुका हूँ भटकते हुए दर-ब-दर
कहाँ है वो जगह जिसे घर कहते हैं
पहले मोड़ पर उसने संग छोड़ दिया
बड़े ख़ुलूस से हम हमसफ़र कहते हैं
बिन पिए ही मेरे कदम बहक रहे हैं
तेरी मदभरी आँखों का असर कहते हैं
क्या जलाएगी कोई और आतिश मुझे
लोग इश्क़ को आग की नहर कहते हैं
तुमने कभी हमको मनाया नहीं अमित
छोड़ देंगें अना भी आप अगर कहते हैं
In response to: Reena’s Exploration Challenge # 134
Nice!
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Thanks
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