यूँ तो समझदारी में कमी नहीं मेरी
जाने क्यों जज़्बातों में बह जाता हूँ
जानता हूँ झूठ है फ़ितरत में तेरी
फिर भी तेरी बातों में बह जाता हूँ
दिन भर तो ख़्याब संभालता हूँ तेरे
कच्चा बाँध हूँ रातों में बह जाता हूँ
कौन तस्सवुर करे रुस्वाई के बाद
आशिक हूँ चाहतों में बह जाता हूँ
सोचता हूँ तोड़ दूँ सारे बंधन अमित
बेबसी है कि नातों में बह जाता हूँ
In response to: Reena’s Exploration Challenge # 173